' आगे भगवान देखो चैत तक कैसे पार करेगा '-कितनी सहजता से चखने वाला पक्षी देखने वाले पक्षी में बदल गया है और सब दुखसुख सह्य हो गये हैं! यहाँ का समाचार सब अच्छा है! आगे... आगे... आगे...
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आदरणीय झा जी नमस्कार! आपके द्वारा की गई दिल्ली ब्लोगर्स की रिपोर्टिंग मैंने पढ़ा पढ़ा ही नहीं अपितु अनुभव किया कि यह (मैं स्वयं) छत्तीसगढ़ का एक अदना सा ब्लॉग का अभी स्वाद चखने वाला भी वहीँ कहीं दुबका बैठा है (मानसिक रूप से).
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हम आम लोग मानव होकर के भी मानव की स्वाभाविक वृत्तियों को भुलाकर ईश्वर की आराधना से जुडे लोगों, जिन्हें हम सन्त-महात्मा कहते हैं से अपेक्षा करने लग जाते हैं कि ईश्वर की भक्ति का रस चखने वाला व्यक्ति अन्य बातों के अलावा काम से तो पूरी तरह से मुक्त होना चाहिये, जबकि सच में ऐसा न तो कभी हुआ है और न हीं वर्तमान में और न हीं ऐसा सम्भव है।
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हम आम लोग मानव होकर के भी मानव की स्वाभाविक वृत्तियों को भुलाकर ईश्वर की आराधना से जुडे लोगों, जिन्हें हम सन्त-महात्मा कहते हैं से अपेक्षा करने लग जाते हैं कि ईश्वर की भक्ति का रस चखने वाला व्यक्ति अन्य बातों के अलावा काम से तो पूरी तरह से मुक्त होना चाहिये, जबकि सच में ऐसा न तो कभी हुआ है और न हीं वर्तमान में और न हीं ऐसा सम्भव है.
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अर्श-फर्श तक जिसकी नजरे हो, एतिकाफ मे जिसकी जिज्ञासा हो, जन्नत से ऊपर, विनम्र, व्यावहारिक, हर गुणो से भरा रहने वाला, रहस्य के समुद्र मे सोने वाला अदृश्य, अलंकारी, संतुष्टि का प्रसाद चखने वाला, उपहास पर, कटु वचनों पर, कुफ्र पर, मुस्कुराने वाला, हर छेत्र का परखी, कला विज्ञानं की आत्मा से बना, एक लेखक ही होता है, एक लेखक ही होता है।