११. मन की एकाग्रता के लिए तथा चित्त की चञ्चलता, विक्षिप्तावस्था को दूर करने के लिए भ्रामरी, उज्जायी, शीतली, शीतकारी आदि प्राणायाम करना हितकारी रहता है।
12.
पति वियोग में यक्षिणी ने मद्य-पान छोड़ दिया था, इसलिए उसकी चञ्चलता तथा मस्ती समाप्त हो गयी थी तथा चञ्चलता के अभाव में बह भौंहो को मटकाना भी भूल गयी थी।
13.
पति वियोग में यक्षिणी ने मद्य-पान छोड़ दिया था, इसलिए उसकी चञ्चलता तथा मस्ती समाप्त हो गयी थी तथा चञ्चलता के अभाव में बह भौंहो को मटकाना भी भूल गयी थी।
14.
इतिहासप्रसिद्ध जो विरक्त योगी महात्मा हर्ष, शोक, राग-द्वेष आदि से रहित समदर्शी शांतचित्त होचुके हैं ; उनके चरित्रों का चिंतन चित्त की चञ्चलता को दूरकर उसे एकाग्र करने में सहायक होता है।
15.
मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण, अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग, अन्तःकरण की उपरति अर्थात् चित्त की चञ्चलता का अभाव, किसी की भी निन्दादि न करना, सब भूतप्राणियों में हेतुरहित दया, इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें आसक्ति का न होना, कोमलता, लोक और शास्त्र से विरुद्ध आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव (2)