त्रैलोक्यमोहन चक्र (प्रथम आवरण) चतुरस्य त्रिरेखायां अर्थात चतुरस्र की तीन रेखाओं पर (दर्शाए गए चित्र के अनुसार) निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें:-
12.
ज्योतिष शास्त्र के प्रसिद्ध फलित ग्रंथों के अनुसार सूर्य पित्त प्रधान, चतुरस्र देह,अल्पकेशी, पिंगल दृष्टि,लाल वर्ण,तीक्ष्ण,शूर एवम अस्थि प्रधान है |
13.
इस प्रकार सर्व लक्षण चतुरस्र कुण्ड शास्त्रकारों का आदेश है कि जितना कुण्ड का विस्तार और आयाम हो, उतना गहरा प्रथम मेखला तक करना चाहिये ।
14.
क्रमशःचतुरस्र, योनि अर्धचन्द्र, त्र्यस्र, वर्तुल, षडस्र, पङ्कज और अष्टास्रकुण्ड की स्थापना सुचारु रूप से करे तथा मध्य में आचार्य कुण्ड वृत्ताकार अथवा चतुरस्र बनाये ।
15.
इसके बाद चतुरस्र यंत्र में श्रीकंठ आदि चार शंकर, पाँच कोणों में पाँच शिवयुवती, इसके बाद नौ कोणों में नौ मूल प्रकृति और बाद के आठ कोणों में कुसुमा आदि आठ देवियाँ।
16.
गर्भगृह प्राय: चौकोर होता है, किंतु चतुरस्र आकृति के अतिरिक्त आयताकार बेसर (द्वयस्र) अर्थात एक ओर गोल तथा एक ओर चौकोर और परिमंडल ये आकृतियों भी स्वीकृत हैं, किंतु व्यवहार में बहुत कम देखी जाती हैं।
17.
स्तम्भ करने के लिये पूर्व दिशा में चतुरस्र, भोगप्राप्ति के लिए अग्निकोण में योनि के आकार वाला, मारण के लिए दक्षिण दिशा में अर्धचन्द्र अथवा नैर्ऋत्यकोण में त्रिकोण, शान्ति के लिए पश्चिम में वृत्त, उच्चाटन के लिए वायव्यकोण में षडस्र, पौष्टिक कर्म के लिए उत्तर में पद्माकृति और मुक्ति के लिये ईशान में अष्टास्र कुण्ड हितावह है ।