मूल रूप से विशिष्ट आपेक्षिकता को “ दिक्-काल अन्तराल की निश्चरता ” (किन्हीं दो घटनाओं के मध्य चतुर्विम दुरी है) के रूप में देखा जाता है जब इसे “ किसी जड़त्वीय निर्देश तंत्र ” में देखा जाता है।
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कल्पना करो कि चतुर्विम जगत का प्रकृति में कोई अस्तित्व नहीं है जैसा कि हमने अभी तक यही समझा है लेकिन हम चतुर्विम जगत को कृत्रिम तरीके से रच भी सकते है इसके लिये हमें एक इंच के दस लाखवें हिस्से से भी काम जगह की आवश्यकता होगी।
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कल्पना करो कि चतुर्विम जगत का प्रकृति में कोई अस्तित्व नहीं है जैसा कि हमने अभी तक यही समझा है लेकिन हम चतुर्विम जगत को कृत्रिम तरीके से रच भी सकते है इसके लिये हमें एक इंच के दस लाखवें हिस्से से भी काम जगह की आवश्यकता होगी।
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व्यापक रूप में, यद्यपि, चतुर्बल के घटक त्रिविम बल के घटकों के समान नहीं होते क्योंकि त्रिविम बलों को संवेग में परिवर्तन की दर के रूप में निर्देश तंत्र समय के सापेक्ष परिभषित किया जाता है जो dp / dt होता है बल्कि चतुर्विम बल को मानक समय में परिवर्तन की दर से परिभाषित किया जाता है अर्थात dp / d τ ।
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इसी प्रकार से हमारे त्रि-आयामी संसार में कोई ऐसी बंद जगह नहीं है जहाँ से चौथे आयाम में प्रविष्ट किया जा सके केवल एक ही तरीका है कि हम कुछ पलों के लिये इतनी तेज गमन करे कि एक इंच के कुछ हिस्से में ही प्रविष्ट हों तो चतुर्विम जगत में पहुंचा जा सकता है जैसे हम ' फ़्लैटलैंड ' में जान की बाजी लगाकर कुछ क्षणों के लिये कूद सकते हैं।