राजकुमार सोमेश्वर का मगध की राजकुमारी चन्द्रबदन के साथ विवाह हो चुका था | नाम के अनुरूप ही चन्द्रबदन बहुत सुंदर थी और वह भी अनेक विद्याएं जानती थी | सोमेश्वर अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था |
12.
राजकुमार सोमेश्वर का मगध की राजकुमारी चन्द्रबदन के साथ विवाह हो चुका था | नाम के अनुरूप ही चन्द्रबदन बहुत सुंदर थी और वह भी अनेक विद्याएं जानती थी | सोमेश्वर अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था |
13.
सबसे पहले वह रानी चन्द्रबदन के कक्ष में पहुंचकर बोला-“ रानी चन्द्रबदन! आज मैं तुम्हारा एक भी बहाना नहीं सुनूंगा | तुम्हें मुझे बताना होगा कि किस कारण तुम मुझसे मिलने से हिचकिचाती रही हो? क्या तुम्हें मुझसे प्रीति नहीं रही है? ”
14.
सबसे पहले वह रानी चन्द्रबदन के कक्ष में पहुंचकर बोला-“ रानी चन्द्रबदन! आज मैं तुम्हारा एक भी बहाना नहीं सुनूंगा | तुम्हें मुझे बताना होगा कि किस कारण तुम मुझसे मिलने से हिचकिचाती रही हो? क्या तुम्हें मुझसे प्रीति नहीं रही है? ”
15.
“ प्रीति तो मुझे अपने पति से अब भी है | ” रानी चन्द्रबदन स्पष्ट स्वर में बोली-“ किंतु तुमसे मुझे कोई प्रीति नहीं है | इसके विपरीत मुझे तो संदेह है कि तुम कोई बहुरूपिए हो, जिसने मेरे पति का अहित करके उनका ये रूप धारण कर लिया है | ”
16.
तब बहेलिए ने कहीं से कागज, कलम और दवात का प्रबंध किया | बंदर बने राजा ने रानी चन्द्रबदन के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें इन्द्रदत्त ने जो कुछ भी उसके साथ किया था, वे सारी बातें विस्तार से लिख दीं | साथ ही वह यह लिखना भी न भूला कि इस समय मैं इस पत्रवाहक के बंधन में हूं | इसे भरपूर धन देकर मुझे छुड़ा लेना |
17.
“ मित्र बहेलिए! ” बंदर बोला-“ न तो मैं कोई जिन्न हूं और न कोई अन्य बुरी आत्मा | मैं अभागा तो भाग्य का मारा हुआ एक साधारण-सा प्राणी हूं | खैर, तुम्हें ये जानने की कोई आवश्यकता भी नहीं है | मैंने तुम्हारे सामने एक प्रस्ताव रखा है, यदि तुम उसके अनुसार मुझे रानी चन्द्रबदन के पास पहुंचा दो तो मैं तुम्हारा बहुत ही उपकार मानूंगा | मेरा विश्वास करो | मैं तुम्हें करोड़पति बनवा दूंगा | ”