सुनहरा, ख़ाकी, भूरा सफ़ेद, मैरून, सलेटी कत्थई, चमकीला रंग दूं सभी से खेलूं मैं होली सभी दोस्तों से है गुज़ारिश, ‘ निर्जन ' बस इतनी जो खेलें होली हम मिल के दिल भी अपने मिल जाएँ जहाँ भी रहे हम दुनिया में याद, एक दूजे को आयें
12.
भोपूं मियाँ बताते थे वह अमावस कि रात थी और गंगा में उफान था अँधेरे में वो भागते रहे बेतहासा, बन्दूक की गोलियों को छकाते तैरते पार किया पानी का विस्तार और दूसरे पाट पहुँच हवा में कपूर कि तरह गुम हो गए उस दिन पहली बार भोपूं मियाँ ने देखा था उस आन्दोलनकारी का चेहरा अँधेरे में लिपटी एक शक्ल और दो आँखे जिनमे उम्मीद का चमकीला रंग था