जब कभी जाऊंगा तो बता दूंगा, साथ चले चलना या अलग से सालासर पहुंच जाना, अब मुझे अपने मित्र व्यास जी की बात याद आई, मैने पूछा सुना है वहां हनुमान जी का प्रसिध मंदिर है तब वह हंस कर बोले वहीं तो हम जाते हैं.
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कोई उसे है आग कहता, कोई उसे तो है राग कहता ; कोई संवारे उसे रंगों में,कोई तराशे है ताज अपना. दीप जीरवी... तुम हम से मिले हो तो मिल के ही चले चलना ; तुम हम से मिले हो तो मिल के ही चले चलना ;
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कोई उसे है आग कहता, कोई उसे तो है राग कहता ; कोई संवारे उसे रंगों में,कोई तराशे है ताज अपना. दीप जीरवी... तुम हम से मिले हो तो मिल के ही चले चलना ; तुम हम से मिले हो तो मिल के ही चले चलना ;
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जब कभी जाऊंगा तो बता दूंगा, साथ चले चलना या अलग से सालासर पहुंच जाना, अब मुझे अपने मित्र व्यास जी की बात याद आई, मैने पूछा सुना है वहां हनुमान जी का प्रसिध मंदिर है तब वह हंस कर बोले वहीं तो हम जाते हैं.
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कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले फानूस की न आस हो, उस पर हवा चले फानूस = काँच का कवर लेता हैं इम्तिहान अगर, सब्र दे मुझे कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है अब कौन लेके झंडा-ए-अमनो-वफ़ा चले चलना अगर गुनाह है,...
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कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले फानूस की न आस हो, उस पर हवा चले फानूस = काँच का कवर लेता हैं इम्तिहान अगर, सब्र दे मुझे कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है अब कौन लेके झंडा-ए-अमनो-वफ़ा चले चलना अगर गुनाह है,
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पंडित बद्रीनाथ की राय हुई कि अब इस तहखाने में ठहरना मुनासिब नहीं, जब यहां की अजब बातों से खुद यहां का राजा परेशान हो गया तो हम लोगों की क्या बात है, यह भी उम्मीद नहीं है कि इस समय किशोरी का पता लगे, अस्तु जहां तक जल्द हो सके यहां से चले चलना ही मुनासिब है।
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कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले फानूस* की न आस हो, उस पर हवा चले लेता हैं इम्तिहान अगर, सब्र दे मुझे कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है अब कौन लेके झंडा-ए-अमनो-वफ़ा चले चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले खंजर लिये खड़ें हों अगर मीत हाथ में “श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले *फानूस = काँच का कवर