हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ? चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते.
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श्री लाल जी के इस पोस्ट में “हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ? चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते.
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श्री लाल जी के इस पोस्ट में “हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ? चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते.
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जिस तरह से लालू धीरी आँच पर धीरे धीरे रबड़ी औटाता है जब तक कि रबड़ी पूरी तरह से मलाई की एक मोटी और हल्की भूरी परत से न ढक जाये, जिस तरह से वो रबड़ी को एक पतली सी चाँदी की परत से सजाता है-अतुल भैय्या ये सब एक स्वर्गिक अनुभव है.
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घनी मूँछो वाले चौरसिया जी रेडियो पर बजते हुये हिंमेंशं रेंशंमिंयाँ के गाने की धुन पर पान के पत्तों पर चूना और कत्था मलने में लगे हुये थे और हमारे बिल्लू भैय्या बर्फ़ की सिल्ली पर बिछे हुये लाल कपड़े के टुकड़े पर चाँदी की परत से सजी हुयी पान की गिलौरियों को ललचाई नजरों से देखने में व्यस्त थे.