मैं तो अभी बच्चा हूँ, बाल चापल्य वश कुछ अधिक बडबोलापन हो गया हो तो आदरणीय सरबत जमाल साहब के साथ-साथ अपने और सभी मित्रों से भी क्षमाप्रार्थी हूँ.
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न ही उसको अपमानित, तिरस्कृत एवं बदनाम होने देता है, वरन् उन दोषों को बाल-चापल्य समझकर धीरे-धीरे उसकी रुचि दूसरी ओर मोडने का प्रयत्न करता रहता है, ताकि वे अपने आप छूट जाएँ।
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यदि भाषा में कथा की बयानी के लिए सहज चापल्य तथा जीवन-धर्मी गंध है तो चांदनी रात के वर्णन में एक गांभीर्य जहां चंद्रमा को क्षयी तथा हवा को बाणभट्ट की कादम्बरी में आये दन्तवीणोपदेशाचार्य की संज्ञा से परिचित कराया गया है।
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लगता है, कवि बालसुलभ चापल्य और वय: सन्धि के स्वप्नों को पीछे छोड़कर तथा कौसानी की चित्रशलभ-सी पंख खोलकर उड़ने वाली घाटी से नीचे उतर कर गंगा के उन्मुक्त कछार में आ गया है और उसकी कवि-चेतना से नीलाकाश में आबद्ध अनंत दिक प्रसाद को हृदयंगम किया है।
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नरेंद्र के गीत के स्वर-विस्तार, में जैसे मयूर का पंख ही फैला-सा जाता है-मेरे गीत के स्वर-लाघव में पुच्छ-रहित मयूरी का पद चापल्य सहज ही कल्पित किया जा सकता है-इन दोंन को पूरक मानकर मन में एक विशेष उल्लास अनुभव करने का मेरा अपना एक कारण था-
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सारांश यह कि उन्होंने ' शूरता ', ' चपलता ', ' लघुता ', ' मूर्खता ', ' सहायता ', ' दीर्घता ', ' मृदुता ' ऐसी संस्कृत का सहारा लिया है, ' शौर्य ', ' चापल्य ', ' लाघव ', ' मर्ौख्य ' ' साहाय्य ', ' दर्ैघ्य ' और ' मार्दव ' ऐसी संस्कृत का नहीं।
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दोनों बुरी बातें हैं ; पर सभा-सोसायटी में जब कोई गम्भीर विवाद चल रहा हो, या कविता अथवा संगीत का तन्मय कर देने वाला वातावरण छा गया हो, तब यदि बेबी शिशु-सुलभ चापल्य से नाच-गा उठे तो क्या वह दाँत तले किरकिरा उठाने वाली बात न होगी? उसे याद है कि किस तरह एक-दो मित्र अपने बच्चों को ला कर सोसायटी में सदा हँसी का पात्र बनते रहे हैं।
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जब वे देखते है कि पिताजी जीर्ण-शीर्ण गौएं तो ब्राह्मणों को दान को दान कर रहे है और दूध देने वाली पुष्ट गायें मेरे लिए रख छोड़ी है तो बाल्यावस्था होने पर भी उनकी पितृभक्ति उन्हें चुप नहीं रहने देती और वे बालसुलभ चापल्य प्रदर्शित करते हुए वाजश्रवासे पूछ बैठते हैं ‘-तत कस्मै मां दास्यसि ' (पिताजी आप मुझे किसको देंगे?) उनका यह प्रश्न ठीक ही था, क्योंकि विश्वजित् यागमें सर्वस्वदान किया जाता है और ऐसे सत्यपुत्र को दान किये बिना वह पूर्ण नहीं हो सकता था।