कांगड़ा घाटी की जलवायु एवं भौगोलिक स्थिति को मध्यनज़र रखते हुए, डॉ. जेम्सन द्वारा सर्वप्रथम वर्ष 1849 में अलमोड़ा एवं देहरादून की नर्सरी से चायना चाय का पौधा लाकर पालमपुर क्षेत्र में प्रयोगात्मक रूप में लगाया गया था।
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कहावत है की एक बार किसी झेन गुरु जब रात को ध् यान करते बार-बार नींद की झपकी आने लगी, कहते है उसने दुःखी हो कर अपनी दोनों पलकें उखाड़ कर फेंक दी, उन् हीं पलकों से ये चाय का पौधा उगा।
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अंग्रेज़ जब भारत आए थे तो अपने साथ चाय का पौधा लेकर आए थे! और भारत के कुछ ऐसे स्थान जो अंग्रेज़ो के लिए अनुकूल (जहां ठंड बहुत होती है) वहाँ पहाड़ियो मे चाय के पोधे लगवाए और उसमे से चाय होने लगी!
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अंग्रेज़ जब भारत आए थे तो अपने साथ चाय का पौधा लेकर आए थे! भारत के कुछ ऐसे स्थान जो अंग्रेज़ों के लिए अनुकूल (जहां ठंड बहुत होती है) थे वहाँ उन्होंने पहाड़ियो में चाय के पोधे लगवाए और उस मे से चाय पैदा होने लगी! अंग्रेज़ अपने साथ चाय लेकर आए भारत मे कभी चाय हुई नहीं! १ ७ ५ ० से पहले भारत मे कहीं भी चाय का नाम और निशान नहीं था!