वास्तव में वे यह जोर देकर कहते हैं कि अमूर्त चित्रकला जैसी कोई चीज नहीं होती, इसकी बजाय वे अपनी कृति को “गैर-वस्तुनिष्ठ” एक प्रकार का वैयक्तीकृत चित्रलेख एवं सुलेख संबंधी आविष्कार बताते हैं जो चित्रित सतह को चौकाने वाले सहज बोध के साथ ताजा करता है, जिसे उन्होंने ज़ेन की खोज करने में होने वाली अनिवार्य बैठक में समझा.