सरकार के अहंकार का चूर होना, मिडिल क्लास की व्यापकता,इसके भीतर तबकों की भागीदारी पर सवाल, संसदीय दादागीरी से आंदोलन की दादागीरी तक,संघ के हाईजैक कर लेने की आशंका, एंटी आरक्षण भीड़ की साज़िश आदि आदि।
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एक अदना से आदमी के अंगूठे का चूर होना, जख्म से उसका लहुलुहान हो जाना नीति निर्माताओं के जेहन में कभी आ भी सकता है यह सोचना भी अपने आप पर हंसी ही पैदा करता है..
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दिखावा करना, घमंड में चूर होना,विन्रम न होना,झुकने की आदत न होना,दुसरे को कठोर वचन कहने से न चूकना,विचार कर के देखना, यह सब अवगुण हमारे अंदर तो नहीं है!
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सरकार के अहंकार का चूर होना, मिडिल क्लास की व्यापकता, इसके भीतर तबकों की भागीदारी पर सवाल, संसदीय दादागीरी से आंदोलन की दादागीरी तक, संघ के हाईजैक कर लेने की आशंका, एंटी आरक्षण भीड़ की साज़िश आदि आदि।
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हर पल में चलना और बस चलते रहना, गिरना, संभालना और उठ खड़े होना,लड़ना, नष्ट होना और लुप्त होकर फिर जन्म लेना,थकना, थक के चूर होना और फिर शुरू हो जाना, रो रो के हसना और हस्ते हस्ते रोना, खोना, मिलना, और फिर गुमशुदा हो जाना,डूबना, उभारना और फिर डूब जाना, रूठे...
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हर पल में चलना और बस चलते रहना, गिरना, संभालना और उठ खड़े होना,लड़ना, नष्ट होना और लुप्त होकर फिर जन्म लेना,थकना, थक के चूर होना और फिर शुरू हो जाना, रो रो के हसना और हस्ते हस्ते रोना, खोना, मिलना, और फिर गुमशुदा हो जाना,डूबना, उभारना और फिर डूब जाना, रूठे