गीतांजलिश्री ♦ जिस तरह के ऊल-जलूल शीर्षक के सहारे नया ज्ञानोदय को लोकप्रियता दिलाये जाने का प्रयास किया जाता रहा है, और जिस छद्म भाषा में ये निंदनीय साक्षात्कार दिया गया है, दोनों उसी गहरे पैठी पुरुष-मानसिकता के प्रतिमान हैं, जो सदियों से चली आ रही है।
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गीतांजलिश्री ♦ जिस तरह के ऊल-जलूल शीर्षक के सहारे नया ज्ञानोदय को लोकप्रियता दिलाये जाने का प्रयास किया जाता रहा है, और जिस छद्म भाषा में ये निंदनीय साक्षात् कार दिया गया है, दोनों उसी गहरे पैठी पुरुष-मानसिकता के प्रतिमान हैं, जो सदियों से चली आ रही है।