१ ६ / ४ / ११, अभी एक नाटक देखा-महाब्राह्मण | ब्राह्मणों के भीतर भेद-भाव, छुआ-छूत | मेरा यह विचार पुख्ता हुआ कि ब्राह्मणवाद जैसी कोई समस्या वस्तुतः नहीं है | हम स्वयं विषमतावादी, भेद-भाव-मूलक, उंच-नीच, श्रेष्ठता-न्यूनता के दंभ में डूबे या उस से ग्रस्त हैं, और अपनी बुराई को नाहक किसी अदृश्य ब्राह्मण वाद के सर पर थोप कर स्वयं छुट्टी पाना चाहते हैं | जिससे हमें कुछ करना न पड़े और कोई हमें दोषी न बनाये |