देख मुझको, मैं बढ़ा डेढ़ बालिश्त और ऊंचे पर चढ़ा और अपने से उगा मैं बिना दाने का चुगा मैं कलम मेरा नही लगता मेरा जीवन आप जगता तू है नकली, मै हूं मौलिक तू है बकरा, मै हूं कौलिक तू रंगा और मैं धुला पानी मैं, तू बुल्बुला तू ने दुनिया को बिगाड़ा मैंने गिरते से उभाड़ा तू ने रोटी छीन ली जनखा बनाकर एक की दी तीन मैने गुन सुनाकर।