यह विद्रोह १८ फरवरी सन् १९४६ को हुआ जो कि जलयान में और समुद्र से बाहर स्थित जलसेना के ठिकानों पर भी हुआ।
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गैर-मूरिंग प्रचालन सभी समय पर किया जाएगा और पाइलट जलयान में ही होने के कारण जलयान यात्रा के लिए तैयार होने से ही प्रचालन शुरू करेगा ।
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बचपन में जिन आचार विचारों का निर्माण हुआ उससे रेल में, जेल में तथा जलयान में कहीं पर भी प्रात:सायं सन्ध्योपासना तथा श्रीमद्भागवत और महाभारत का स्वाध्याय उनके जीवन का अभिन्न अंग बना रहा।
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बचपन में जिन आचार विचारों का निर्माण हुआ उससे रेल में, जेल में तथा जलयान में कहीं पर भी प्रात: सायं सन्ध्योपासना तथा श्रीमद्भागवत और महाभारत का स्वाध्याय उनके जीवन का अभिन्न अंग बना रहा।
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जगत-जीवन के कार्य-व्यापार में प्रेम का तुलनपत्र अब कौन देखे! अपने अधूरे प्रेम के जलयान में शांत मन चला जाना चाहता हूं विश्वास के उस अपूर्व द्वीप की ओर जहां मेरी और तुम्हारी कामनाओं के जीवाश्म विश्राम कर रहे हैं ।
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जगत-जीवन के कार्य-व्यापार में प्रेम का तुलनपत्र अब कौन देखे! अपने अधूरे प्रेम के जलयान में शांत मन चला जाना चाहता हूं विश्वास के उस अपूर्व द्वीप की ओर जहां मेरी और तुम्हारी कामनाओं के जीवाश्म विश्राम कर रहे हैं ।
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[...] जगत-जीवन के कार्य-व्यापार में प्रेम का तुलनपत्र अब कौन देखे! अपने अधूरे प्रेम के जलयान में शांत मन चला जाना चाहता हूं विश्वास के उस अपूर्व द्वीप की ओर जहां मेरी और तुम्हारी कामनाओं के जीवाश्म विश्राम कर रहे हैं ।
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पानी में चमकती धूप की स्वर्णिम आभा एक सतरंगी चमक पैदा कर रही थी, और साथ में गुलाबी ठण्ड का असर, कई लोग अपने निजी जलयान में सूर्य स्नान का भी आनंद ले रहे थे, यहाँ पर साल के कई महीनो तक बर्फ रहती है, जिसपर शरदकालीन खेलों का आनंद भी लिया जा सकता है.
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यात्री दल जलयान में था और जलयान मंथर गति से थाईलैण्ड के सर्वाधिक आकर्षक और प्राकृतिक सुषमा से भरपूर द्वीप फुकेट की ओर बढ़ रहा था | यहाँ यह बता देना उचित होगा कि हम जिस थाईलैण्ड को एक स्वतंत्र देश के रूप में जानते हैं वास्तव में वह कई समुद्री द्वीपों का एक समुच्चय है | इस समुच्चयी रूपी गुलदस्ते का सबसे सुन्दर फूल फुकेट को माना जा सकता है जिसकी प्राकृतिक शोभा को भर आँख निहारने के लिए पूरी दुनिया के सैलानी बेताबी में इस ओर खींचे चले आते हैं |
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यह आर्दश उन्हें बचपन में पितामह प्रेमघर चतुर्वेदी के, जिन्होंने 108 दिन में निरंतर 108 बार श्रीमद्भागवत का परायण किया था, राधाकृष्ण की अनन्य भक्ति, और पिता ब्रजनाथ के भागवती कथा द्वारा धर्मप्रचार एवं माता मूनादेवी के दुखियों की सेवा में प्रत्यक्ष मिला, तथा धनहीन किंतु निर्लोभी परिवार में पलते हुए देश की दरिद्रता तथा अर्थार्थी छात्रों के कष्टनिवारण का स्वभाव एवं उनके जीवन में ओतप्रोत, आचार विचारों का निर्माण हुआ जिससे रेल में, जेल में, जलयान में भी सांयप्रात: संध्योपासना तथा श्रीमद्भागवत और महाभारत का स्वाध्याय उनके जीवन का अभिन्न अंग बना रहा।