I cheered this change in direction when it was announced, and still do. But here, too, I find the implementation flawed. The administration is trying to build democracy much too quickly. A mere 22 months, for example, passed between the overthrow of Saddam Hussein and elections for the prime minister of Iraq; in my view, the interval should have been closer to 22 years. Haste ignores the historical record. Democracy has everywhere taken time, and especially so when it builds on a foundation of totalitarian tyranny, as in Iraq. As I wrote in April 2003: जब इस दिशा में परिवर्तन की घोषणा की गई थी तभी मैंने इसका स्वागत किया था और अब भी कर रहा हूं. लेकिन यहां भी इसे लागू करने में मुझे कुछ कमियां दिखाई पड़ रही हैं. प्रशासन बहुत शीघ्र लोकतंत्र स्थापित करना चाहता है . उदाहरण के लिए सद्दाम हुसैन को हटाने और इराक में प्रधानमंत्री के चुनाव में केवल 22 महीने का अंतराल रहा . मेरे दृष्टिकोण में यह अंतराल 22 वर्षों का होना चाहिए था . जल्दबाजी में ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा हो जाती है . लोकतंत्र हर जगह समय लेता है और वह भी इराक जैसे स्थान पर जहां उसे अत्याचारी अधिनायकवादी बुनियाद पर खड़ा करना है . अप्रैल 2003 में मैंने लिखा था “ लोकतंत्र एक सीखी जाने वाली आदत है न कि प्रवृत्ति..सिविल समाज के आधारभूत ढ़ांचे जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , आवागमन की स्वतंत्रता , एकत्र होने की स्वतंत्रता , कानून का शासन , अल्पसंख्यकों के अधिकार तथा एक स्वतंत्र न्यायपालिका जैसे तत्वों को चुनाव कराने से पहले स्थापित किया जाना चाहिए.”
12.
Democratization : Voting does not start the democratization process but culminates and ends it. Before Iraqis can benefit from meaningful elections, they need to leave behind the bad habits of Saddam Hussein's tyrannical rule and replace them with the benign ways of civil society. There are many steps ahead, such as creating voluntary institutions (political parties, lobby groups, etc.), entrenching the rule of law, establishing freedom of speech, protecting minority rights, securing property rights, and developing the notion of a loyal opposition. Elections can evolve with these good habits. Voting should start at the municipal level and gradually move up to the national level. Also, they should begin with legislatures and move to the executive branch. लोकतंत्रीकरण - मतदान लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया की परिणति है न कि इसका आरंभ . इससे पहले कि इराकी चुनावों का अर्थपूर्ण लाभ उठा सकें उन्हें सद्दाम हुसैन के क्रूरतापूर्ण शासन की आदतों को छोड़कर सिविल समाज की अच्छी आदतों को सीखना होगा. इसके बहुत से रास्ते हैं जैसे स्वयंसेवी संस्थाओं का निर्माण (राजनीतिक दल, लॉबी ,गुट आदि ) , कानून का शासन स्थापित करना , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्थापित करना , अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा , संपत्ति के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा एक सार्थक विपक्ष के सिद्धांत को विकसित करना . इन अच्छी आदतों में से चुनाव निकलकर आएगा .मतदान नगरपालिका स्तर से शुरु हो कर राष्ट्रीय स्तर तक जाए . साथ ही विधायिका से शुरु हो कर कार्यपालिका तक जाए . इस प्रक्रिया में समय लगेगा क्योंकि इराक की विभाजित जनता को परस्पर निकट लाना और उनकी दशकों की अधिनायकवादी आदतों को छुड़ाना सरल नहीं है. मैक्सिको दक्षिण अफ्रीका , रुस , चीन के अनुभव बताते हैं कि क्रूरता से लोकतंत्र तक का रास्ता काफी लंबा और उबड़ खाबड़ है . कोई भी कठिन कार्य जल्दबाजी में नहीं किया जा सकता और वह भी किसी विदेशी द्वारा. केवल इराकी जनता ही इस दिशा में प्रगति कर सकती है और वह भी अपने तरीके से अपनी भूलों से सबक लेते हुए .