आदि-आदि जमाने भर के रोतले प्रलाप, जो कि खुद तीस्ता के हलफ़नामों में झूठे साबित हो चुके हैं और जिन गुजरात के दंगों को लेकर बार-बार मोदी को कोसा जाता है, उससे कई गुना अधिक हिन्दुओं को कश्मीर में मारा जा चुका है जबकि “ जातीय सफ़ाया ” किसे कहते हैं, इन मानवाधिकारवादियों को यह कश्मीर जाकर ही पता चल सकता है, लेकिन ये वहाँ जायेंगे नहीं।
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जब इन तत्वों से मुकाबले के लिये हिन्दूवादी संगठन आगे आते हैं (साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का भी उज्जैन से गहरा सम्बन्ध रहा है) तो जिस प्रकार कन्नूर और मलप्पुरम में संघ कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई, या कंधमाल में एक वयोवृद्ध स्वामीजी की हत्या हुई या फ़िर कश्मीर से जिस प्रकार हिन्दुओं का जातीय सफ़ाया किया गया, ऐसा कुछ होता है, जिसका दोष भी षडयंत्रपूर्वक ये सेकुलर उन्हीं के माथे पर ढोल देते हैं।