वर्ष 1991 के भूकंप के केन्द्र बिंदु जामक गांव के पुनर्वास में कई ऐसे परिवारों को वंचित कर दिया जो आपदाओं में अपना लगभग सब कुछ गंवा चुके हैं।
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वर्ष 1991 के भूकंप में सब कुछ गंवा कर गांव के पास ही रह रहे जामक गांव के कुछ लोगों पर वर्ष 2003 में भी दैवीय आपदा की मार पड़ी।
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जून माह की बाढ़ में नौलुणा का झूला पुल बहने से स्याबा और सालू गांव के ग्रामीणों को बायणा, डिडसारी, जामक होते हुए मनेरी तक 14 किमी जंगल का रास्ता तय करना पड़ रहा था।
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1970 के दशक में बनी मनेरी भाली चरण-प्रथम, परियोजना की पावर सुरंग के ऊपर बसे जामक गांव में 1991 के मध्यम शक्ति (6.2 रिक्टर स्केल) के भूकंप ने भारी तबाही मचा दी थी।
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सबसे अधिक, 71 लोग गंगोत्री मोटर मार्ग पर मनेरी जल विद्युत परियोजना के बैराज को पार करने के बाद लगभग पाँच सौ मीटर की ऊँचाई पर भूमि के समतल हिस्से में बसे जामक गाँव में मारे गये थे।
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सबसे अधिक, 71 लोग गंगोत्री मोटर मार्ग पर मनेरी जल विद्युत परियोजना के बैराज को पार करने के बाद लगभग पाँच सौ मीटर की ऊँचाई पर भूमि के समतल हिस्से में बसे जामक गाँव में मारे गये थे।
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घाटी पर हो रहे बांधों के दुष्परिणाम ः-(१) मनेरीभाली (१) के कारण निर्मित सुरंग निर्माण से शिरोर आदिस्थानों के प्राकृतिक जल स्त्रोत लुप्त हो गये तथा जामक गांव को भूंकप में भारी जान-मान का नुकसान उठाना पड़ा ।
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जामक हो या चांई गांव अथवा टिहरी बांध की झील के ऊपर बसे दर्जन भर गांवों के बांध बनने के बाद धराशाई होने का आंकलन नहीं किया गया, बल्कि लगता यह है कि खतरा छुपाया जाता है, ताकि विरोध में आवाजें न उठें।
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किसको याद करें, किसके लिए रोएं, किसको दें कंधा, किसके कंधें पर धरें सिर, अनंत हाहाकार के बीच किसको कहें पराया? उत्तरकाशी भूकंप के बहाने लिखी गयी जामक की कथा का सच देश के हर हिस्से में घ्ाटी त्रासदी का सच है।
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इस परियोजना की सीमा का भान 1978 की भागीरथी बाढ़ तथा 1991 के भूकंप में हो सका, जब गाद से टनैल और बिजलीघर भर गया और टनैल के उपर स्थित जामक गांव में सभी मकान ध्वस्त हो गए और 76 ग्रामीण तथा सभी पशु कालकवलित हो गए।