डा. साहब की इस घर-कथा में जार और जारिणी का चेहरा उघड़ कर सामने आ गया है।
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जारिणी (सं.) [सं-स्त्री.] वह स्त्री जो किसी अन्य पुरुष से प्रेम करती हो।
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यहां ईम् के लिए ' ' जरिमा '' शब्द का प्रयोग हुआ है जो जार अथवा जारिणी का पर्यायवाचक है ।
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यानी, जारिणी ने पूरी व्यूह-रचना रची है, डा. धर्मवीर जिसकी ओर पहले ही इशारा कर चुके हैं।
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या तो उसकी शंका दूर हो जाएगी, अन्यथा जारिणी जिस से गर्भा हुई है, उसे अपने जारकर्म की पैदाइश को पालना पड़ेगा।
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‘ जारिणी ' पत्नी से चले तलाक के मुकदमें पर डा. धर्मवीर की घर कथा ‘ मेरी पत्नी और भेड़िया ' आज की सबसे चर्चित और समस्या का समाधान मांगती किताब है।
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वे जान लें कि द्विज स्त्री जान-बूझ कर जारिणी बनी फिरती है तथा द्विज जार व्यवस्था को स्वीकारती है, उस के विपरीत, दलित स्त्री तो ‘ गुलाम दलित आदमी ' की जोरु है.
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रात एक असत्य, मिथ्या जारिणी की तरह अपने माया-लोक का सृजन करती है और सबेरा उसे मिटा डालता है रात और दिन का नाता अटूट है हम जिस तह सबेरे की प्रतीक्षा करते हैं उसी तरह शाम आने की प्रतीक्षा में लालायित रहते।
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और हाँ, अनामिका को बताया जा रहा है कि ‘ औरतजात ' की बात करने से पहले वे जान लें कि जार कर्म पर दलित स्त्री को तलाक दे दिया जाता है, जबकि ब्राह्मण ‘ जारिणी ' की तो हत्या कर देता है और खुद जार बना रहता है.
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अक्षसूक्त में जारिणी स्त्री की उपमा देते हुए जुआरी कहता है कि मैं बार-बार जुआ न खेलने का संकल्प करता हूँ, लेकिन जब मैं पासों को खेला जाता देखता हूँ तो उनकी ओर स्वतः ऐसे खिंचा चाला जाता हूँ, जैसे कोई जारिणी स्त्री जार की आरे खिंची चली जाती है।