जीवाश्मीय भ्रूण को पूर्वकैंब्रियन से जाना जाता है, और ये कैंब्रियन युग में भारी संख्या में पाए जाते हैं.
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तब से लगातार विकास के इंजन को जारी रखने के लिए मानव ने जीवाश्मीय ईंधनों का जमकर दोहन किया है।
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अब तक जितने भी जीवाश्मीय प्रमाण हमें प्राप्त हो चुके हैं, उनके आधार पर जीवों के क्रमिक विकास पर अच्छा खासा प्रकाश पड़ता है।
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जीव-विज्ञानी प्रजातियों के विलोपन से जुड़े संदर्भ में अर्जित समझ के अनुसार वर्तमान पारिस्थितिकी से जीवाश्मीय इतिहास से रूझान और प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं.
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जीव-विज्ञानी प्रजातियों के विलोपन से जुड़े संदर्भ में अर्जित समझ के अनुसार वर्तमान पारिस्थितिकी से जीवाश्मीय इतिहास से रूझान और प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं।
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जीव-विज्ञानी प्रजातियों के विलोपन से जुड़े संदर्भ में अर्जित समझ के अनुसार वर्तमान पारिस्थितिकी से जीवाश्मीय इतिहास से रूझान और प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं।
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पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिहाज से यह सबसे ज्यादा खतरनाक जीवाश्मीय ईंधन है, लेकिन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने की वजह से आज भी इसकी मांग है।
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इसलिए भी अनदेखी होती रही है, क्योंकि भारत में ऐसे कोई अत्यंत पुराने पुरातात्विक या जीवाश्मीय साक्ष्य नहीं मिल रहे थे, जिन से पता चलता कि मनुष्य जाति के विकासक्रम (इवोल्यूश) में भारत की क्या भूमिका रही है।
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इसलिए भी अनदेखी होती रही है, क्योंकि भारत में ऐसे कोई अत्यंत पुराने पुरातात्विक या जीवाश्मीय साक्ष्य नहीं मिल रहे थे, जिन से पता चलता कि मनुष्य जाति के विकासक्रम (इवोल्यूश) में भारत की क्या भूमिका रही है।