दोछत्ती पर रखी हुई थी एक टोकरी यादों वाली आज सफ़ाई करते करत झाडन उसको जरा छू गया बीते हुए दिवस तितली ब सजे कक्ष की दीवारों पर कल का खर्च हुआ हर इक पल फिर से संचित आज हो गया और लगे नयनों में तिरने बरगद, पीपल, वे चौपालें वे बिसायती वे परचूनी औ; लकड़ी कोयल