टाक्सिन या तो उपर से या नीचे से या शरीर के मल, मूत्र, पसीनाआदि (पेरीफरी या स्किन) से निकलते हैं।
12.
यह एक प्राकतिक समर्थ बड़ाने वाली प्रक्रिया हे | एक बार जब शरीर से टाक्सिन निकल जाते हैं तो यह संतुलित हो जाता है।
13.
टाक्सिन में भी शहद जैसे ही गुण होते हैं और पूर्वकर्मा थेरेपी से शरीर से आसानी से निकल कर शरीर को आराम पहुंचाता है।
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किंतु उपर्युक्त किसी भी उपवास में जल के पर्याप्त सेवन से शरीर में संचित दूषित अवयव (टाक्सिन) शरीर से निकल जाता है.
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गाय के दूध की दही का ऊर्जा क्षेत्र 6. 5 से 6.7 मीटर तक होता है तथा यह मानव शरीर से टाक्सिन निकालने में सहायता करता है।
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इसमे प्रोटीन तथा अमीनो अम्ल पर्याप्त मात्रा में मिल जाते है, इसमे कैंसर कारक टाक्सिन नही बनते है,जो की मक्का तथाज्वार में बन जाते है ।
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चिंता की बात यह है कि ई-कचरे को रिसाइकिलिंग करते हुए अगर ध्यान नहीं दिया गया तो उससे निकलने वाली टाक्सिन व दूसरी गैसें सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदेह हैं।
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पूर्वकर्मा थेरेपी के बाद टाक्सिन गैस्ट्रोइन्टेस्टाइनल ट्रैक में आ जाते हैं और उन्हें निकालने के लिए पंचकर्म थेरेपी करनी होती है | जैसे वमन, नस्य, विरेचन, रक्तमोक्षण और वस्ति।
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घी या औषधीय तेल से अभ्यांतर स्नेहन या आंतरिक ओलेशन की मदद से टाक्सिन को शरीर के गैस्ट्रो इन्टेस्टाइनल भाग में पंहुचाया जाता है और फिर पंचकर्म थेरेपी से इसे निकाल दिया जाता है।
20.
यह मोटापज शरीर में आविष (टाक्सिन) लाते हैं, जो यकृत (' लिवर ') पर इतना अधिक भार डाल देते हैं कि शारिरिक वसा को निकालना बहुत कठिन हो जाता है।