ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो, जिससे मनुष्य, ठूंट सा खड़ा न रहे, औरों से घुले-मिले, किसी को साथ ले, किसी के संग चले।
12.
खेतों का चाँद देख रहा है मेरे मुख की तरफ, दाहिने और बाएं जली हुई जमीन, भूसा, फसल के कट जाने पर बचा हुआ ठूंट, फटी-पड़ी खेत शिशिर का जल |
13.
भले ही आज ठूंट पत्रकार (जो मुर्खता कि सीमा लाँघ गए है) अपने दिखाये पर इतरा रहे है, पर जल्द ही भारतीय समाज जो जरा देर से जगता है फिर से ठोस पत्रकारिता कि ओर रुख करेगा.....
14.
... कारण महाराष्ट्र और मराठवाडे में जबरदस्त सूखा है, पीने के पानी की किल्लत है, किसानों ने अपने खेतों में लगाए और सालों से बच्चों जैसे बडे किए फलों के बगिचे ठूंट हो गए और वह उन्हें तोडने के लिए मजबूर है।
15.
खेत-खलियानों में हल की धार भोथरी हो गई है कितनी बार-कितनी बार फसल के कट जाने के बाद समय आ गया है, चला भी गया कब का! बीज फल गए हैं फिर तुम क्यूँ रह गए खड़े अकेले-अकेले! दायें और बाएं जली जमीन-भूसा-फसल कट के बाद बचा ठूंट--खेतों की फटन,--शिशिर का जल! ”