के बहाने भीड़ से बचाकर उसके कूल्हे पर हाथ धरता हूँ वह सिहरती है मेरी कनपटियां सुर्ख हो जाती हैं बस की गति और विराम के साथ नींद भी शामिल है छूता हूं उसे बार-बार छूने से बचने का ढोंग रचते हुए सिमटती है दुबक जाती है खिड़की से देखती है बाहर मोबाइल पर पढ़ती है कोई पुराना मैसेज रिंग करके काटती है बार-बार घूंट-घूंट पीती है गुस्सा बस में लड़की