उदाहरण के रूप में यह कहा जा सकता है कि हिन्दी भारत की विधित: राष्ट्रभाषा नहीं है (क्योंकि भारत के संविधान में कोई भाषा राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत नहीं की गई है), लेकिन यह भारत की तथ्यत: राष्ट्रभाषा है क्योंकि भारत के विभिन्न राज्यों के लोग एक-दूसरे से संवाद के लिए इस भाषा का सर्वाधिक उपयोग करते हैं।
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मेरा सत्य ही दिन की चार मन: स्थितियों में चौदह बार बदलता है, अभी थोड़ी देर पहले का प्रमुदित मन थोड़े अंतराल पर कलुषित कालेपन में घिघियाने, सबसे आंख बचाने लगता है, तो इससे अपने सत्य के बाबत ही क्या नतीजा निकले? जो भी निकलेगा वह तथ्यत: एकमेव और संपूर्ण होगा? और नहीं होगा तो उसके अनेकमय में मेरा अपना ठीक-ठीक क्या मैं कैसे छांटूं? इज़ इट आस्किंग द इम्पॉसिबल?