दुनिया में जिस क़दर ख़ौफ़नाक जंग हुए जिस क़दर अज़ाब बरपा किये गये जिस क़दर मज़हब के नाम पर क़त्ल व ख़ून हुए, उनमें से निस्फ़ से ज़्यादा इस ग़लत अक़ीदे की बिना पर बरपा हुए और इस तमाम कुश्तो ख़ून ने ज़मीन के बहिश्ती चेहरे को जहन्नम में तबदील कर दिया इसलिये अगरचे मैं इस अंगूरिस्तान का एक मामूली मज़दूर हूँ और अगरचे मैं स्वामी दयानन्द की जूती का तसमा खोलने के भी लायक़ ख़्याल न किया जाऊँगा।