जैसे चाय की दूकान की मेज़ पर वह जाने कैसी किसकी फोटो देखी, किसी गरीब डकैतों के गिरोह की बेसबब गिरफ़्तारी की हिंसक तस्वीर सा वह समूह चित्र जैसे लगे मेरी अपनी भूली खुद की हो.
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प्रथम सभी पाठकों / लेखकों को उनके बचपन के दोस्तों की याद दिलाना और यह भी ध्यान रखना कि हम बड़े ऐसी कोई रंजिश आपस में ना रखें जिसका प्रभाव हमारे बच्चों के मस्तिष्क पर फ्रेम में जडी किसी तस्वीर सा स्थिर हो कर रह जाए.
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रेल की पटरियों से परावर्तित होती जादुई चमक, सामान ढ़ोने के हाथ ठेले, वेटिंग लाइंस पर खाली खड़े हुए उदासीन डिब्बे, सिगनल पर जलती हरी बत्ती, सौ मीटर दूर लाइन स्विचिंग केबिन का धुंधला सा आकार पानी में लहराती हुई तस्वीर सा झिलमिलाता रहता है.
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ब्लॉगर थकान एक पहचाना सच है, हम भी हफ्तों से लेकर महीनों तक तस्वीर सा टंगे रहने का आनंद ले चुके हैं पर साझा ब्लॉग में लाभ ये है कि कि इन टंगी तस्वीरों के बदस्तूर कुछ न कुछ भगीरथ इस थकान दौर को भी खींच ले जाएंगे और फिर उतसाह आ जाएगा।
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दिल की सुर्ख गलियों में, वो आज भी धड़कता है-बंद आँखों में, तस्वीर सा उभरता है-उसकी बातों की वो, मीठी सी महक.......दर्द देने का हुनर भी खुदा ने बख्शा है-उसके हाथों की पकड़, यादों को, जकड़ लेती हैं-फिर भी-ये सच है कि-उससे कोई
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दिल की सुर्ख गलियों में, वो आज भी धड़कता है-बंद आँखों में, तस्वीर सा उभरता है-उसकी बातों की वो, मीठी सी महक.......दर्द देने का हुनर भी खुदा ने बख्शा है-उसके हाथों की पकड़, यादों को, जकड़ लेती हैं-फिर भी-ये सच है कि-उससे कोई...