| 11. | रोय तिमि तिम्रो लागि, रुने मेरो रहर् भाथ्यो।
|
| 12. | उत्तम भोग लगाय मोर मरकट तिमि पोषें॥
|
| 13. | तिमि मिलि अमितजगनृपति कब सम होंहिं प्रियतम प्रान कै।
|
| 14. | लक्ष्मी सोहत दान सों तिमि कुल वधू लजाय ।
|
| 15. | छीनि लेई जिमि जानि जड़ तिमि सुरपतिहिं न लाज॥
|
| 16. | तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम।
|
| 17. | तिमि अपार नर जुरेहुं शब्द श्रुति नेक न परसै।
|
| 18. | छीनि लेई जिमि जानि जड़ तिमि सुरपतिहिं न लाज॥
|
| 19. | उत्तम भोग लगाय मोर मरकट तिमि पोषें॥
|
| 20. | तर म हुने छु सँधै तिमि सँग
|