श्रम का सीकर दु: ख का आँसू हँसती आँखों में सपने, जल! कितने जाल डाल मछुआरे पानी से जीवन छीनेंगे? कितने सूरज लू बरसा कर नदियों के तन-मन सोखेंगे? उन्हें स्वयम् ही पिघले हिम के जल-प्लावन में घिरना होगा फिर-फिर जल के घाट-घाट पर ठाठ-बाट तज तिरना होगा, महाप्रलय में एक नाम ही शेष रहेगा जल ….. जल...... जल ही जल ।