“ मेरे गुलाब पीले है ” यह उत्तर था उसका ; ” उतने ही पीताभ जितने कि गहरी पीली तृणमणि से बने प्राकृतिक सिंहासन पर बैठी किसी मत्स्य-कन्या के बाल हो सकते हैं!
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इसी के नीचे वह बैठकर पढता था, कुछ बडा हुआ तो खेत से थका-हारा लौटकर इसी के नीचे बैठ जाता और पत्तियों से छन-छनकर आती तृणमणि बनाती सूर्य-किरणों की अठखेलियों में खो जाता और विवाहोपरान्त, यहीं बैठकर रसोई में खाना बनाती, हाथ भर का घूँघट काढे पत्नी सुखिया को देखा करता था जो कभी-कभी घूँघट की आड में उसे देखकर मुस्करा देती थी, तो कभी शरमा जाती थी।