लता मंगेश्कर), त्रिताल (16 मात्राएँ, गीत: पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई, फिल्म: मेरी सूरत तेरी आँखें, स्वर: मन्ना डे) आदि तालों का भी प्रयोग किया जाता था ।
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वैसे राग “ जयजयवन्ती ” स्वतंत्र रूप से वर्षा ऋतु के परिवेश को रचने में समर्थ है | राग “ जयजयवन्ती ” की विलम्बित त्रिताल की एक प्रचलित रचना के शब्दों पर ध्यान दीजिए, इससे आपको राग की क्षमता का अनुमान हो जाएगा |
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एक नेताजी पूरा गला फाड़ के नर्रा रहे थे, कह रहे थे शिव ने ये किया शिव ने वो किया, शिव ने त्रिताल किया शिव ने कहरवा किया, लोगों को घर बेटा हो तो राम भरोसे और बेटी हो तो शिव भरोसे वगैरह वगैरह ।
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इसके पश्चात् श्री कृष्ण लीलाओं पर आधारित कत्थक नृत्य, तत्कार, उठान, हस्तक व चक्रों का कुशल-संयोजन, सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के चक्कर लगाने की गति को दर्शाते हुए आकाशचारी नृत्य, तबले के प्रश्नों का जवाब घँूघरुओं से देकर जुगलबंदी, सोलह मात्रा की त्रिताल में सम से सम तक विभिन्न तिहाइयों का प्रदर्शन तथा राजस्थान के अतिथि सत्कार को सर्वोपरि बताते हुए प्रसिद्ध लोकगीत केसरिया बालम पधारो म्हारे दे श......... पर कत्थक भाव-नृत्य प्रस्तुत किया।