त्रिधा अपेत की यह धारणा साहित्य शास्त्र की किताबों में सैद्धांतिक तौर पर तो है।
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त्रिधा अपेत की यह धारणा साहित्य शास्त्र की किताबों में सैद्धांतिक तौर पर तो है।
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कालेन भिद्यमानस्तु स बिन्दुर्भवति त्रिधा ” इस त्रिकोण से स्थूल बाह्य सृष्टि का आध्यात्मिक रहस्य प्रकट हो जाता है।
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उत्कृष्टमध्याल्पतया त्रिधा वृद्धि क्षयावपि विकृताविकृता देहं घ्नान्ति ते वतर्यन्ति च॥-(अ ० सं ० सू ० १)
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भारतीय संस्कृति के आंतरिक पक्ष को जो योगदान उन्होंने दिया, उसकी चर्चा संसार का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद इन शब्दों में करता है-त्रिधा बद्धोवृषभोरोरवीतिमहादेवोमत्यांआ विवेश॥
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पदार्थ-प्रतिपादन में संकेत द्वारा शब्द से पदार्थों का, वाक्यार्थ-प्रतिपादन में ग्रंथ का, और रचना द्वारा (पद का) पुरुष का त्रिधा संबंध होता है।
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पदार्थ-प्रतिपादन में संकेत द्वारा शब्द से पदार्थों का, वाक्यार्थ-प्रतिपादन में ग्रंथ का, और रचना द्वारा (पद का) पुरुष का त्रिधा संबंध होता है।
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जैसे इन दो नदियों के मिलने से सरस्वती हुई, वैसे ही सत् और तम के योग से रज उत्पन्न हुआ और यह त्रिधा प्रकृति कहलाई।
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पदार्थ-प्रतिपादन में संकेत द्वारा शब्द से पदार्थों का, वाक्यार्थ-प्रतिपादन में ग्रंथ का, और रचना द्वारा (पद का) पुरुष का त्रिधा संबंध होता है।
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अतः सब मिलकर परम शक्तिशाली एवं अमोघवर प्राप्त परम प्रतापी अक्षयवट के पास त्रिधा शक्तियों से युक्त तीन परम पावन नदियों-गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम स्थल पर पहुँचे।