तुरुप के 1 और 2 के जादूगरों से बड़ी पुजारिनों तक से लेकर सूर्य, दंडाज्ञा और सबसे आखिर में विश्व जैसी शक्ति की उत्पत्ति के चरित्रों और आदर्शों का तुरुप का पत्ता मूलतः प्रतिनिधित्व करता था.
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पर विनोबा जानते हैं कि संस्कृत या मराठी में कुछ लिखने से तो सब लोग उनका लाभ उठा नही सकते इसलिए धूलिया जेल में दंडाज्ञा भोगते हुए उन्होंने गीता के १ ८ अध्यायों पर १ ८ प्रवचन हिंदी में किये।