आयुक्त को कमिश्नर लिखे जाने पर कोई पक्का तर्क नहीं मिल पाया तो कहा गया कि रेलपांत का हिन्दी लौहपथ गामिनी है और सिगरेट को श्वेत धूम्रपान दंडिका कहा जाता है जो कि आम बोलचाल में लिखना संभव नहीं है।
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इसके अतरिक्त कई लोग हिन्दी का उपहास करने के प्रयोजन से “हिन्दीकरण” करते है: उदाहरण: सिग्नल = लौहपथ गामिनी गमनागमन सूचक हरितारुण लौह पट्ट | सिगरेट = श्वेत पत्रावरित ताम्बूल नलिका / दंडिका | ऐसे लोगों से सतर्क रहने की आवश्यकता है |
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इसके अतरिक्त कई लोग हिन्दी का उपहास करने के प्रयोजन से “ हिन्दीकरण ” करते है: उदाहरण: सिग्नल = लौहपथ गामिनी गमनागमन सूचक हरितारुण लौह पट्ट | सिगरेट = श्वेत पत्रावरित ताम्बूल नलिका / दंडिका | ऐसे लोगों से सतर्क रहने की आवश्यकता है |
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हाँ, वही सलेटी-सा पसरा हुआ पत्थर, जिस पर हर बार या तो किसी थकी हुई दोपहर का या किसी पस्त-सी शाम का बैठना होता है गश्त से लौटते हुये ढाई घंटे वाली खड़ी चढ़ाई से पहले सांस लेने के लिए और सुलगाने के लिए विल्स क्लासिक की चौरासी मीलीमीटर लम्बी नन्ही-सी दंडिका......
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कि बारिश की बूंदों से गीली हुई चौरासी मीलीमीटर वाली नन्ही दंडिका ने बड़ा समय लिया सुलगने में और उस देरी से खीझ कर पानी भरे जूतों के अंदर गीले जुराबों ने ज़िद मचा दी-जूतों से बाहर निकल पसरे पत्थर पर थोड़ी देर लेट कर उसकी सलेटी गर्मी पाने की ज़िद | सुना है, देर तक चंद नज़्मों की लेन-देन भी हुई जुराबों और पत्थर के दरम्यान | जुराबें तो सूख गई थीं...
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' आती है यार, लेकिन एक सुट्टा लगाओ और देखो वह कितनी दूर चली जाती है-' और उसने साहिल के हाथ से सिगरेट ले लिया था-हर टेबल पर धुएँ का गुबार था और हर प्याली से कहवे की महक भाप बन कर उड़ रही थी-उस रात निशा के लाख कहने के बाद भी उसने सिगरेट को हाथ भी नहीं लगाया लेकिन वह नींद से कब तक निहत्थे लड़ती, चौथी रात खाँसते-खाँसते उसने भी उस श्वेत दंडिका को अपनी जिंदगी में शामिल हो जाने दिया था-
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धुम्रपान दंडिका के अधजले ठोंटके बिस्तर के नीचे से या एस्ट्रे की राख से ढूंड-ढूंड कर कब तक सुल्गाओगे, स्वयम के हौंठ अंगुलियाँ अपना बिस्तर यहाँ तक कि अपना ह्रदय भी धीरे-धीरे जलाते जाओगे, और मुझे विश्वास है कि जिस दिन अधजले ठोंटके भी ना मिलेंगे तो पक्के कवि बन जाओगे, और तब तिहारी कविताओं में विरह होगा संयोग होगा सौन्दर्य होगा वात्सल्य होगा आसक्ति होगी हास्य होगा वैमनस्य होगा प्रेम होगा विरोध होगा आदि होगा अंत होगा पर अधजले धुम्रपान दंडिका के टुकडों का कहीं भी नामोनिशान ना होगा,
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धुम्रपान दंडिका के अधजले ठोंटके बिस्तर के नीचे से या एस्ट्रे की राख से ढूंड-ढूंड कर कब तक सुल्गाओगे, स्वयम के हौंठ अंगुलियाँ अपना बिस्तर यहाँ तक कि अपना ह्रदय भी धीरे-धीरे जलाते जाओगे, और मुझे विश्वास है कि जिस दिन अधजले ठोंटके भी ना मिलेंगे तो पक्के कवि बन जाओगे, और तब तिहारी कविताओं में विरह होगा संयोग होगा सौन्दर्य होगा वात्सल्य होगा आसक्ति होगी हास्य होगा वैमनस्य होगा प्रेम होगा विरोध होगा आदि होगा अंत होगा पर अधजले धुम्रपान दंडिका के टुकडों का कहीं भी नामोनिशान ना होगा,
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धुम्रपान दंडिका के अधजले ठोंटके बिस्तर के नीचे से या एस्ट्रे की राख से ढूंड-ढूंड कर कब तक सुल्गाओगे, स्वयम के हौंठ अंगुलियाँ अपना बिस्तर यहाँ तक कि अपना ह्रदय भी धीरे-धीरे जलाते जाओगे, और मुझे विश्वास है कि जिस दिन अधजले ठोंटके भी ना मिलेंगे तो पक्के कवि बन जाओगे, और तब तिहारी कविताओं में विरह होगा संयोग होगा सौन्दर्य होगा वात्सल्य होगा आसक्ति होगी हास्य होगा वैमनस्य होगा प्रेम होगा विरोध होगा आदि होगा अंत होगा पर अधजले धुम्रपान दंडिका के टुकडों का कहीं भी नामोनिशान ना होगा,
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धुम्रपान दंडिका के अधजले ठोंटके बिस्तर के नीचे से या एस्ट्रे की राख से ढूंड-ढूंड कर कब तक सुल्गाओगे, स्वयम के हौंठ अंगुलियाँ अपना बिस्तर यहाँ तक कि अपना ह्रदय भी धीरे-धीरे जलाते जाओगे, और मुझे विश्वास है कि जिस दिन अधजले ठोंटके भी ना मिलेंगे तो पक्के कवि बन जाओगे, और तब तिहारी कविताओं में विरह होगा संयोग होगा सौन्दर्य होगा वात्सल्य होगा आसक्ति होगी हास्य होगा वैमनस्य होगा प्रेम होगा विरोध होगा आदि होगा अंत होगा पर अधजले धुम्रपान दंडिका के टुकडों का कहीं भी नामोनिशान ना होगा,