अपितु विवाह के प्रस्ताव से मन मयूर बसन्त की दक्षिण पवन की शीतलता में नृत्य कर उठा।
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सूर्य की किरणें अभी न निकली थी; दक्षिण पवन से पत्तियाँ अभी जैसे झूम रही थीं, परन्तु हम लोग इक्के पर बैठकर नगर को कई कोस पीछे छोड़ चुके थे।
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आप विश्वास कीजिए, मेरे मन में ऐसा कोई विषय या उद्वेग का श्रीगणेश नहीं हुआ ; अपितु विवाह के प्रस्ताव से मन मयूर बसन्त की दक्षिण पवन की शीतलता में नृत्य कर उठा।
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दिन भर की प्रचंड गर्मी, देर रात की ठिठकी हवा और उसके बाद निशा-शेष में जब दक्षिण पवन ग्रीष्म ऋतु की श्रान्त और शिथिल अलस प्रकृति नदी के सिमटे हुए आँचल को फहराने लगता तो ‘छिवही‘ आम के विशाल वृक्ष की निस्पन्द टहनियां उच्छवासित हो उठती …..
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' ' मात्र छाई उदासी कभीं जग गया चौंक अद्भुत सुमन गंध में रंग गया जब सुरभि ले बहा मंद दक्षिण पवन हाय मेरा भटकता रहा मंद मन ॥-हो सके तो यह लय (कविता के संग) बाऊ को पोस्ट कर देवें!क्या पता संतुलन-बिंदु लयात्मक हो कर प्रकट हो!:)