कि मैं अपनी ओर से और अपनी पत्नी और बच्चों और दत्तक संतान की ओर से अपने पूर्व नाम / उपनाम..........................
12.
* पत्रिका (कुंडली) में गुरु राहु यु ति हो व पंचम स्थान पाप प्रभाव में हो तो दत्तक संतान का योग बनता है।
13.
नि: संतान दम्पति को चाहिए कि वे अपने मस्तिष्क में दत्तक संतान के प्रति कभी भी कटुता नहीं लाएँ और न ही अतिरिक्त लाड़-प्यार में बिगड़ैल बना दें।
14.
अत: दत्तक संतान से हमेशा अपनत्व वाला ही व्यवहार करें ताकि उसे आप पर पूरा-पूरा विश्वास हो और वह अन्य लोगों की बातों में कभी न आए।
15.
जहाँ तक दत्तक संतान का प्रश्न है, किसी भी दत्तक संतान को दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता की औरस संतान की ही तरह अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।
16.
जहाँ तक दत्तक संतान का प्रश्न है, किसी भी दत्तक संतान को दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता की औरस संतान की ही तरह अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।
17.
बशर्ते कि.... क-दत्तक संतान किसी भी उस व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकेगा/सकेगी जिस से कि वह अपने जन्म देने वाले परिवार में बना/बनी रह कर नहीं कर सकता/सकती थी।
18.
कई बार दत्तक संतान को वयस्क होने तक स्वयं के सगे या पराए होने का अहसास नहीं होता है, ऐसे में जब वह समझदार हो जाए तो उसकी जिज्ञासा का खुलासा किया जा सकता है।
19.
ग्रहण करता हूं ताकि मैं और मेरी पत्नी, बच्चे और दत्तक संतान को इसके पश्चात् मेरे पूर्व नाम / उपनाम से नहीं अपितु ग्रहण किए गए नाम / उपनाम.................... से बुलाया जाए, जाना जाए और भेद किया जाए ।
20.
अर्थात संतान गोद लेने की इच्छा कभी भी पूरी की जा सकती है, बस स्वयं की मानसिकता इसे अनुरूप बनाने की जरूरत होती है कि दत्तक संतान कभी परायापन अनुभव न करे अन्यथा कई तरह की परेशानियाँ भी जन्म ले सकती हैं।