जब उसके समवेदना के वाक्यों से पिता का हृदय पिघल गया और वे माता के संस्मरण कहने लगे, शेखर दबे-पाँव उठकर बाहर चला गया।
12.
एकबारगी तो इच्छा हुई कि दबे-पाँव जीने में जाकर सुने कि आखि़र ये लोग क्या बातें करते हैं? मगर, यह सिर्फ सोच ही पायी।
13.
एकबारगी तो इच्छा हुई कि दबे-पाँव जीने में जाकर सुने कि आख़िर ये लोग क्या बातें करते हैं? मगर, यह सिर्फ़ सोच ही पाई।
14.
नित्यकर्म के बाद चूल्हा जलाकर उसने दूध में थोड़ा-सा दलिया बनाया, तीन सन्तरों का रस निकाला फिर शशि के कमरे की ओर दबे-पाँव देखने गया।
15.
वह स्वर नि: सन्देह उसी का था, लेकिन उसके स्वर से कितना भिन्न, कितना अभ्यस्त! मैं दबे-पाँव जाकर भंडारे के किवाड़ की ओट खड़ी हो गयी।
16.
इसे देख कर सदा यह आभास होता है कि यह आदमी नहीं कोई बिल् ली है, जो बिना आहट, दबे-पाँव, एक स् थान से दूसरे स् थान पर सतत घूमती रहती है।
17.
वह फिर पूर्ववत् निश्चल हो गयी, तब शेखर धीरे-धीरे उठा, एक बार मुँह शशि के सिर के बहुत पास लाकर उसने जैसे शशि के केश सूँघे और फिर दबे-पाँव अपने कमरे में चला गया।
18.
धुन्ध का अन्तरालोक बढ़कर किरण बन गया ; शेखर ने एक लम्बी साँस ली, जो हठात् शशि के लिए आशीर्वाद बन गयी, फिर दबे-पाँव वहाँ से हटकर काम पर जाने की तैयारियों में लगा...
19.
जैसे-तैसे तड़के तक छटपटाती पड़ी रह कर वह उठी ; शोभा देवी की जो साड़ी वह पहने हुए थी उसे धो कर उसने फैला दिया और जिन कपड़ों में आयी थी वही पहन कर तैयार हो कर दबे-पाँव कमरे में चक्कर काटती रही।