बस युं ही समझो भावना कह लेने को लिख लेते हैं, रजकणों के अवशेषों की रेख पर मुर्तरूप कर लेते हैं, तुम शब्दों में बाँधना जीवन के विस्तारों को, अपना एक कोना हम भी, भिंच कर सहेज लेते हैं, उदास आसमानों पर बाद्लों की कल्पना, भीगी हवा के सोंधेपन से गमकती अल्पना, भावना की स्याही से रचे हर्फों को तुम जब भी पढना, स्मृतियों के पटल पर उजास छवि सी बन दमकना, तुम हे अनुपमा |