एक कर रहा था देश की तारीफ जैसे किया करते हैं विदेश से आए सैलानी और दूसरा था कि कसीदा पढ़े जा रहा था दमनकर्ता की इस देश के लिए तरक्की की योजनाओं का हमारी भाषा में इसको साफ़ साफ़ क्यों न कहें कि हम घिरते जा रहे हैं गहरे धुंधलके के अंदर एक साथ कैसे बजा सकते हैं हुक्म दो दो आकाओं के.
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एक कर रहा था देश की तारीफ जैसे किया करते हैं विदेश से आए सैलानी और दूसरा था कि कसीदा पढ़े जा रहा था दमनकर्ता की इस देश के लिए तरक्की की योजनाओं का हमारी भाषा में इसको साफ़ साफ़ क्यों न कहें कि हम घिरते जा रहे हैं गहरे धुंधलके के अंदर एक साथ कैसे बजा सकते हैं हुक्म दो दो आकाओं के.