इन तमाम आंकड़ों तथा विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि दवाओं का मूल्य निर्धारण बेतरतीब ढ़ंग से किया गया है तथा कारपोरेट घरानों को पैसा कमाने की या कहें लूट की खुली छूट दी गई है.
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अब तक लागू दवा नीति के अनुसार, मात्र चौहत्तर दवाओं के मूल्य निर्धारण का अधिकार सरकार के पास है, जबकि अन्य सभी जरूरी दवाओं का मूल्य निर्धारण दवा निर्माता कंपनियों द्वारा मनमाने ढंग से किया जाता रहा है!
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वह स्वयं लागत के आधार पर दवाओं का मूल्य निर्धारित क्यों नहीं करती! आज देश में दवाओं का कारोबार जहां हजारों करोड़ का है, वहीं सरकारी दवा कंपनियों का कुल सालाना कारोबार मात्र पांच सौ करोड़ का, यह आंकड़ा भी स्वास्थ्य के प्रति सरकारी तंत्र की संजीदगी पर सवाल खड़े करता है।