उपरोक्त तथ्यों से अस्वाभाविक मृत्यु अथवा दहेज मृत्यु साबित नहीं होती है बल्कि स्वाभाविक मृत्यु जो खाना बनाते समय आग लगने से हुई है, साबित हो जाती है।
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जो कोई दहेज मृत्यु कारित करेगा वह उतनी अवधि तक के कारावास से दण्डित किया जायेगा जो सात वर्ष से कम नहीं होगा लेकिन जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी।
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छेड़छाड़ के मामले 38734 से बढ़कर 40413, यौन उत्पीड़न अपराध 10950 से बढ़कर 12214, पति / सम्बन्धियों द्वारा निर्दयता बरतने के मामले 75930 से बढ़कर 81344, दहेज मृत्यु के मामले 8093 से बढ़कर 8172 हो गए।
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हमें यह सोचना चाहिए कि विकास के सोपानों पर चढ़ने के बावजूद भी आखिर क्यों आज इस देश की बालिका भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज मृत्यु के रूप में समाज में अपने औरत होने का दंश झेल रही है?
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अतः पत्रावली पर विद्यमान समस्त साक्ष्य के आधार पर अभियोजन पक्ष अभियुक्तगण को आरोपित अपराध से जोड़ने में सफल नहीं हुआ है और समस्त गवाहों की गवाही से दहेज मृत्यु का कोई मामला अभियुक्तगण के विरूद्व नहीं बनता है।
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भारतीय समाज में महिलाओं पर हिंसा के प्रमुख कारण क्रमशः परिवार में पुत्र को प्राथमिकता, तथा महिलाओं की अशिक्षा या अल्प शिक्षा है जिसकी परिणिति दहेज मृत्यु, बहुओं को जलाना एवं घरेलु हिंसा के रूप में आती है ।
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दहेज म्रत्यु के मामले मे करार साबित करना ज़रूरी नही-सुप्रीम कोर्ट सुप्रीमकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि दहेज मृत्यु के मामले में अभियोजन पक्ष को यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि दूल्हे और दुल्हन के परिवारों के बीच दहेज के लिए कोई करार हुआ था।
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इस प्रकार इस गवाह की गवाही से किसी भी प्रकार से दहेज मृत्यु का मामला अभियुक्तगण के विरूद्व साबित एवं प्रमाणित नहीं है और इस गवाह के बयान के आधार पर अभियोजन पक्ष किसी भी प्रकार से अभियुक्तगण को आरोपित अपराध से जोड़ने में सफल नहीं हैं।
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एक दैनिक अखबार में छपे राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2007 में दहेज के लिये परेशान करने और दहेज मृत्यु के मामलों में 2 लाख 15 हज़ार लोग 733 लोग गिरफ्तार किये गये और जिनमें से 85 से लेकर 94 फीसदी तक लोग बरी हो गये।
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एक दैनिक अखबार में छपे राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2007 में दहेज के लिये परेशान करने और दहेज मृत्यु के मामलों में 2 लाख 15 हज़ार लोग 733 लोग गिरफ्तार किये गये और जिनमें से 85 से लेकर 94 फीसदी तक लोग बरी हो गये।