कैसे छोड़ देती जीवन भर अपमान सहने के लिये! उन्हें कोई दासी-पुत्र, या दासों की संतान न कह सके-वस्त्रभूषण रहित, दैन्य ओढ़े, बेबस पतियों को दासत्व से मुक्त दिलायी, उनका राज-पाट वसूला और अंत में अपने लिये कुछ माँगने की बात पर स्पष्ट मना कर, क्षत्राणी के उपयुक्त स्वाभिमान को हत नहीं होने दिया.