एक ओर उसका उद्देश्य यह था कि मेहनतकश मनुष्य की वास्तविक और ठोस श्रम-सक्रियता के लिए उसके वास्तविक सामर्थ्य का पता लगाया जाए, जिसके बिना उसके लिए उपयुक्त काम की तलाश करना (व्यवसायगत दिशा-निर्धारण) तथा किसी संबद्ध काम के लिए उपयुक्त मनुष्य का चयन (व्यवसायगत चयन) करना सचमुच कठिन होता है।