4-गुरु या दीर्घ मात्रा के लिए 2 का प्रयोग करते हैं जबकि लघु मात्रा के लिए 1 का प्रयोग होता है।
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कैसे ऐसा हो जाता है कि कोई दीर्घ मात्रा, लघु हो जाती है और दो लघु मात्राएं मिलकर दीर्घ हो जाती हैं ।
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4-गुरु या दीर्घ मात्रा के लिए 2 का प्रयोग करते हैं जबकि लघु मात्रा के लिए 1 का प्रयोग होता है।
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शब्दों की गर्दन मरोड़कर दीर्घ मात्रा को लघु बनाना हिन्दी भषा की प्रकृति नहीं है, उर्दू की है ; अत: हिन्दी का अपना विधान है ।
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बस फर्क ये है कि बहरे हजज में जहां 1222 होता है वहीं इसमें 12112 होता है अर्थात हजज की तीसरी दीर्घ मात्रा को दो लघु में बांट दिया है ।
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चलो आज कुछ मात्राओं की बात की जाए कि कैसे ऐसा हो जाता है कि कोई दीर्घ मात्रा लघु हो जाती है और दो लघु मात्राएं मिलकर दीर्घ हो जाती हैं ।
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छंद-लक्षण के इस आलोक में उपर्युक्त मुक्तक लघु मात्राओं के १ ६ चिह्नित स्थानों में से ९ स्थानों (बोल्ड लेटर्ज़ में इंगित) पर दीर्घ मात्रा की अवांछित आवृत्तियाँ लादे खड़ा है।
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तो क् या हुआ कि आखीर का रुक् न जो है वो अब फाएलातनु न रह कर हो गया है फाएलुन जो कि फाएलातुन की एक दीर्घ मात्रा के कम हो जाने से बना है ।
19.
ऊपर जो बहर है वो है हजज़ पर ये सालिम या समग्र नहीं हो पा रही है क् योंकि इसमें आखिर का रुक् न अधूरा है उसमें से एक पूरी दीर्घ मात्रा की कमी हो गई है ।
20.
मुख्य रूप से ह्रस्व एवं दीर्घ मात्रा, अनुस्वार, अनुनासिकता, कण्ठ्य, तालव्य, मूर्द्धन्य, ओष्ठ्य, वस्त्र्य, दन्त्य, दन्तोष्ठ्य ध्वनियाँ, श्वास की मात्रा, उच्चारण अवयवों में परस्पर स्पर्श एवं घर्षण, संयुक्त व्यंजन, विसर्ग की जानकारी देना उपयोगी रहेगा ।-