कल कुछ दोस्तों को आवाज़ दी और उनको सुनाई ये बातें और फिर उठ गया ये कहता हुआ-रेगिस्तान के इस छोर पर एक मुल्ले ने अपने ख़ुदा के आगे दुखड़ा रोना शुरू कर दिया है, मैंने भी कुछ बेवजह की बातें कर ली है और अब वक़्त हो चला है उपदेशक की बातों को भूल कर बाज़ार की उस गली का चक्कर लगा आने का, जहां मिलती है बेअक्ल होने की दु आ...
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आदत के अनुसार इन लोगों ने विदेशियों के सामने यह दुखड़ा रोना एक बार फिर शुरू कर दिया है कि माई बाप! जिस गांधी की नसीहतों से आजिज़ आकर हमने उसे 62 साल पहले राजघाट पर उसके सारे उसूलों के साथ दफन कर दिया था, आज उसी का जिन्न न मालूम कौनसी दरार से छोटे गांधी के रूप में बाहर आ गया है और देश के लोगों को अपनी ईमानदारी और अहिंसा की लाठी से हमारे खिलाफ हांक रहा है।