दुग्ध पान के बहाने विष पान कराने वाली रक्छसी के प्रति भी प्रभु के भाव...अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किये गये हैं...
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साइंसदान इसका कारण ' कडल-हारमोन ' को बतलातें हैं जो दुग्ध पान कराने वाली माँ के शरीर में बहुतायत में पाया जाता है.
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एक: औरत बच्चे पैदा करे, और फिर उन्हे दुग्ध पान भी कराए कम से कम १ वर्ष तक तो अनिवार्य रूप से..
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भगवान आत्यंतिक प्रेम से जिस प्रकार बछड़े के वात्सल्य से प्रेरित माँ अपने स्तनों मे दूध लाती है व अपने वत्स को प्रेम से दुग्ध पान कराती है..
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जिस प्रकार माता अपनी संतानों को पुष्ट करने के लिए उन्हें अपना दुग्ध पान कराती हैं, उसी प्रकार आप भी हमारे पोषण के लिए अपने परम कल्याणमय रस का हमे भागी बनाओ।
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सामान्यत: माताएं कन्याओं की अपेक्षा बालकों को अधिक समय तक दुग्ध पान कराती हैं उसके बाद भी उनकी सेहत का ही अधिक ध्यान रखती हैं, इस प्रवृत्ति को बदलना होगा।
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कभी-कभी बालक प्रताप महाराणा कुंभ के विजय स्तम्भ की परिक्रमा कर मेवाड़ की धूलि मस्तक पर लगा, कहा करते थे कि, ” मैने वीर छत्राणी का दुग्ध पान किया है।
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जिस प्रकार माता अपनी संतानों को पुष्ट करने के लिए उन्हें अपना दुग्ध पान कराती हैं, उसी प्रकार आप भी हमारे पोषण के लिए अपने परम कल्याणमय रस का हमे भागी बनाओ।
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श्री तिवारी जी की विशेषता है कि वे अपने बाल्यकाल में ही उस ' अद्ध्यात्म ' रुपी गाय का दुग्ध पान कर चुके थे जिसे पाने के लिए लोग अपना सारा जीवन खप देते हैं।
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एक दिन सुबह − सुबह माता यशोदा दही मथ रही थीं और नंद बाबा गौशाला में बैठकर गायों का दूध दुहवा रहे थे, तभी कृष्ण जाग गए और माता यशोदा से दुग्ध पान की जिद करने लगे।