कटुता, स्वार्थपरता, वैरभाव आदि तमाम दुष्प्रवृत्तियां जाने अनजाने हमारे आचरण में आती रहती है।
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जब तक ये तमाम दुष्प्रवृत्तियां आपसे दूर नहीं होंगी, तब तक आपको परमात्मा के दर्शन नहीं हो सकेंगे।
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यही कारण है कि भारत मे दूसरे उधोगों मे उपस्थित सारी दुष्प्रवृत्तियां इस क्षेत्र में प्रवेश कर गई हैं ।
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दूसरे हिस्से में कुछ दुष्प्रवृत्तियां परेशान कर सकती हैं लेकिन आपके धैर्य और साहस से सभी मुश्किलें दूर हो जाएंगी।
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यही कारण है कि भारत मे दूसरे उधोगों मे उपस्थित सारी दुष्प्रवृत्तियां इस क्षेत्र में प्रवेश कर गई हैं ।
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कटुता, स्वार्थपरता, वैरभाव आदि दुष्प्रवृत्तियां जाने अनजाने हमारे आचरण में आती रहती हैं, जो हमारे व्यक्तित्व को धूमिल करती हैं।
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इन प्रवृत्तियों वाला व्यक्ति अगर भगवद् प्राप्ति की तरफ उन्मुख होता भी है तो ये दुष्प्रवृत्तियां उसे पीछे की तरफ ढकेल देती हैं और इस प्रकार भगवद् प्राप्ति के मार्ग में विघ्न पड़ जाता है और साधक / मनुष्य को पता भी नहीं चलता कि इस तरह की प्रवृत्तियों से ही उसका पतन हो रहा है।
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शाकाडेन एवं मिरोकुसान में अंतर्राष्ट्रीय बैठकों के दौरान सदस्यों ने नम आंखों व शुद्ध हृदय से अपने अनुभवों को बांटा और एक ऐसा आध्यात्मिक वातावरण हुआ जिसमें अहंकार जैसी दुष्प्रवृत्तियां दूर हो जाती है और एक मनुष्य का आत्मविश्वास उस स्तर तक पहुंच जाता है जहां वह समाज के लिए कार्य करने को बोधित हो जाता है और अपने व्यक्तित्व में परिवर्तन लाने के लिए स्वप्रेरित हो जाता है।
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इनके निराकरण का उपाय बतलाते हुए ऋषि पिप्लाद कहते हैं कि यदि स्वप्नावस्था में हमें बुरे भाव आते हों तो ऐसे दुःस्वप्नों को पाप-ताप, मोह-अज्ञान एवं विपत्ति जन्य जानकर उनके निराकरण के लिए ब्रह्म की उपासना शुरू कर देनी चाहिए ताकि हमारी दुर्भावनाएं, दुर्जनाएं, दुष्प्रवृत्तियां शांत हो जाएं जिससे मन में सद्प्रवृत्तियों, सदाचरणों, सद्गुणों की अभिवृद्धि हो और शुभ स्वप्न दिखाई देने लगे और आत्मा की अनुभूति होने लगे।