बतौर अध्यक्ष आपके संस्मरण के ये अंश गैरज़रूरी से लगते हैं जबकि आप स्वयं नवोदित ब्लागरों को चिन्तनपरक / विज्ञान सम्मत /अकादमिक दृष्टि बोध बनाये रखने प्रशिक्षण दे रहे हों! वैसे तहजीब के ख्याल से लखनऊ के ब्लागर्स को आपसे व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर मिलने ज़रूर आना चाहिए था! उम्मीद है कि आलेख पर मेरे विचारों को अन्यथा नहीं लेंगे!
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बतौर अध्यक्ष आपके संस्मरण के ये अंश गैरज़रूरी से लगते हैं जबकि आप स्वयं नवोदित ब्लागरों को चिन्तनपरक / विज्ञान सम्मत / अकादमिक दृष्टि बोध बनाये रखने प्रशिक्षण दे रहे हों! वैसे तहजीब के ख्याल से लखनऊ के ब्लागर्स को आपसे व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर मिलने ज़रूर आना चाहिए था! उम्मीद है कि आलेख पर मेरे विचारों को अन्यथा नहीं लेंगे!
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सिंह साहब आज आपका आलेख पढकर कितना खुश हूं कह नहीं सकता! हमारे अपने द्वैध को किस कदर ख़ूबसूरती से उधेड़ डाला है आपने! मनुष्यता के एक्य और सोच का बड़प्पन! कितने और बौद्धिक होंगे जो इतना सहज होकर अयाचित और अवांछित को ठुकराने का साहस रखते हों! आपने अपनी बात तथ्यपरक ढंग से कही है, एक ऐतिहासिक और सम्यक दृष्टि बोध के साथ! चिंतन के उथलेपन पर गहरी मार करते हुए आपके आलेख के लिये! एक ही शब्द है मेरे पास! साधुवाद! साधुवाद! साधुवाद!