`इश्क़ ने पक्ड़ा न था ग़ालिब अभी वह्शत का रन्ग रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए ख़्वारी हाए हाए ग़म-ए दुन्या से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की ग़म-ए दुन्या से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की फ़लक का देख्ना तक़्रीब तेरे याद आने की
12.
बस यही देख्ना चाहता हुं कि भगवान मैरे से कितने खुश है. बेकार जी..... तो कमीना जी हम चलते है उस ओर जहां आप अपने अगले जन्मो को देख सकते है, ओर इस सफ़र मै आप के पायलट होगे देश के महान डाकटर झटका जी...